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पार्श्व तीर्थ के बारे में

जप तप भक्ति का स्वर्णिम प्रकाश

उमंग और उत्साह की तरंग से अनुपम भक्ति का अनूठा संगम ....
श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ में जहाँ तप और जप का चिदानन्द मिलन होता है, वहाँ इसके कण-कण में व्याप्त है मांगलिकता। यहाँ प्रवेश करते ही जन मन अपने ही अंतस से जुड़ जाते हैं। क्योंकि इसी स्थल पर प्रभु पार्श्वनाथ की साधना की पवित्रता बिखरी पड़ी है।

तीर्थोद्धार के साथ ही इसका पल-पल सूरिमंत्र, नमस्कार महामंत्र, उवसग्गहरं-भक्तामर स्त्रोत सह सूरिमंत्र पीठिका आदिक साधना के प्रवाह से दर्शन-ज्ञान-चारित्र के साधक पुण्यात्माओं ने अमृत संचारित किया है। यही भावोल्लास के साथ साधना की समग्रता से तीर्थोद्धार-जीर्णोद्धार का कार्य सृजनात्मक हो गया और यह मंगल कल्लाण आवासं की तपोभूमि आज श्रद्धालुओं की गहरी आस्था का पावन स्थल बन गया है।

जैन गुरु आचार्य
तीर्थ में प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयवरिषेणसूरीश्वरजी म.सा. साजा दुर्ग से प्रथम छरीपालित संघ के साथ पधारें। पू. श्री ने सूरीमंत्र की पंचम पीठीका की आराधना की। आपकी निश्रा में प्रथम वर्षीतप पारना महोत्सव पूर्वक सम्पन्न हुआ।

प.पू.आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयगुणोदय सागर सूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्तनी विदुषी साध्वी रत्ना परम पूज्य श्री महाप्रज्ञा श्रीजी म.सा. ने शिष्याओं के साथ तीर्थ में प्रथम चार्तुमासिक आराधना की।

प्रतिष्ठाचार्य प.पू. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयरायशसूरीश्वरजी म.सा. के आज्ञानुवर्तनी महातपस्वनी प.पू. साध्वीवर्या श्री गीतपद्माश्रीजी म.सा. ने तीर्थोद्धार की निर्विघ्न सम्पन्नता हेतु उवसग्गहरं स्त्रोत के 185 अक्षरों को आत्मसात करते हुए 185 अट्ठम तप की आराधना की प्रतिष्ठा महोत्सव के द्वितीय दिवस दिनांक 19.01.1995 को तपस्या की पूर्ण आहुति हुई।

मंगल कल्लाण आवासं की तपोभूमि श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ अनगिनत श्रद्धालुओं की चिदानन्द भक्ति से ओतप्रोत गहरी आस्था का आसाधारण स्थल है।

श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ

तीर्थोद्धार मार्गदर्शक प्रतिष्ठाचार्य