23rd Teerthankar Lord Shri Parshwanath commemorates his holy visit to this region about 3000 years ago
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23rd Teerthankar Lord Shri Parshwanath commemorates his holy visit to this region about 3000 years ago as a Shraman ...
READ MOREपधारिये, श्री पार्श्वनाथ प्रभु की तपोभूमि के तीर्थोद्धार का नगपुरा महामहोत्सव 04 जनवरी 2024 से 07 जनवरी 2024 तक नगपुरा महोत्सव में आप सभी आमंत्रित हैं |
READ MOREतीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ प्रभू की तपोभूमि श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में नवनिर्मित आधुनिक श्री पार्श्व जीव मैत्री धाम (गौशाला) का 15 फरवरी 2024 को उद्घाटन सम्पन्न हुआ।
READ MOREपरम उपकारी कविकुलकिरीट महाबसंत सूरिदेव दिव्य आषीषदाता प.पू. श्रीमद् विजय लब्धिसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ प्रभावक आषीषदाता आचार्य भगवंत प.पू. श्रीमद् विजय विक्रमसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ पति संबंधित दस्तावेजों के साक्षात्कार प.पू.पं. श्रीमद् अभयसागरजी म.सा.
तीर्थोद्धार मार्गदर्षक प्रतिष्ठाचार्य प.पू. आचार्य भगवंत, प्रज्ञापुरुष श्रीमद् राजयशसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थोद्धार मुहूर्त प्रदाता पूज्य पाद आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयरामचंद्र सूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ के रचनाकार साधुता के स्वामी प.पू. श्रीमद् कैलाससागर सूरीश्वरजी म.सा.
एतिहासिक प्राचीन इस आस्थामयी देहरी मंदिर जो सह भव्य तीर्थोद्धार खंडहर होती गई का पुनः सन् 1979 में धर्मनिष्ठ दुगड़ गोत्रीय रावलमल जैन ‘मणि’ दुर्ग निवासी ने स्वप्न निर्देशानुसार जीर्णोद्धार एवं भव्य तीर्थोद्धार के कार्य का बीड़ा उठाया और आज भव्य सप्तशिखरमय मंदिरावली के साथ महाप्रभाविक श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ देदीप्यमान कराया।
संवत् 2059 (सन् 1995) में पू. आत्मकमल लब्धि-विक्रम गुरु कृपा पात्र पू.आ.श्री राजयश सूरी म.सा. के मार्गदर्शक में मव्य निर्माण पूरा हुआ और पूज्यश्री निश्रा में की श्री उवसग्गहरं पार्श्व जिनालय की प्रतिष्ठा हुई। अधिक जानकारी ...
श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा ने तीर्थोद्धार-जीर्णोद्धार की एतिहासिक गरिमामय गाथा लिखते हुए अपने सर्वोदयी विश्वास विशाल जनमानस में स्थापित किया है। तीर्थ परिसर के विशाल भू-भाग में तीर्थकर उद्यान निर्मित है |
यहाँ परम तारक देवाधिदेव श्री ऋषभदेव प्रभु से लेकर शासनपति श्री महावीर स्वामी तक 24 तीर्थकर परमात्माओं को जिन वृक्षों के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ वह वृक्ष रोपित किया गया है। प्रत्येक परमात्मा की केवलज्ञान मुद्रा में प्रतिमा प्रतिष्ठित है। अधिक जानकारी ...
भारत का पहला मेरूपर्वत उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ में निर्मित हुआ है। मुख्य मंदिर के ठीक पीछे शाश्वत मेरू पर्वत गुफा सहित जिनालय बनाया गया है जो इस तीर्थ के समर्पित शिल्पी श्री मणि सा. के दूरदृष्टा होने का प्रतीक है। तीर्थ अंजनशलाका विधान अनुसार अस्थायी मेरूपर्वत बनाया जाना था।
श्री मणि जी ने तत्काल मुख्य मंदिर निर्माण से बचे हुए पत्थरों से जो अनुपयोगी था कारीगरों से अपनी ही देखरेख में शाश्वत मेरु पर्वत की रचना करायी। ऊपर देहरी निर्मित कर श्री पार्श्व प्रभु जी की धातु प्रतिमा तथा गुफा में चैबीस तीर्थकर परमात्माओं की प्रतिष्ठा हुई है। अधिक जानकारी ...
देवाधिदेव श्री पार्श्व प्रभु के जन्म-दीक्षा कल्याण अवसर पर तीर्थ में देशभर के हजारों श्रद्धालु अट्ठम तप आराधनार्थ पधारते हैं। तीर्थ परिसर के विशाल भू-भाग नगपुरा महोत्सव (मेला) का आयोजन होता है।
5 दिवसीय आयोजन में अंचल के ग्रामीण स्वस्फूर्त पार्श्व प्रभु की भक्ति से जुड़ते है। इस अवसर पर परम्परागत आंचलिक संस्कृति के अनुसार लोकगीत-नृत्य-संगीत एवं झांकी साज सज्जा के साथ आत्मिक आनंद से परमात्मा भक्ति में भाव विभोर हो धन्यता का अनुभव करते हैं। अधिक जानकारी ...
23rd Teerthankar Lord Shri Parshwanath commemorates his holy visit to this region about 3000 years ago
DEHRI stood the pious footprints of Parshwa- Prabhu was mutilated by the impact of time
Lord Parshwanath was first named as "UWASAGGHARAM" as per Bhadrabahu Samhita ppp.38.Vo1,111