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तीथोद्धार का संकल्पः
सन् 1979 में दुर्ग के ही साहित्यकार पत्रकार श्री रावलमल जैन ‘मणि’ ने दिव्य प्रेरणा से वशीभूत होकर इस पवित्र भूमि के तीर्थोद्धार का इतिहास रखा। देव-गुरु-धर्म की कृपा एवं पूज्यपाद गुरुदेव श्रीमद् विजय लब्धि सूरिदेव के दिव्य आशिष ने रावलमल जैन ‘मणि’ को प्रभु पार्श्व के विहार विच्देद स्थल के तीर्थोद्धार एवं प्राचीन देहरी जीर्णोद्धार का निमित्त बनाया। मणिजी उद्यत बने अपने सहपाठी मूलचंद बोथरा, (दोनों ही ओसियाँ तीर्थ गुरुकुल के भू.पू.छात्र) किशनलाल कोठारी, चैनराज लूनिया के साथ। दिवा स्वप्न को साकार करने उन्होंने चिन्तन यात्रा प्रारम्भ की पूज्यपाद आचार्य श्रीमद् कैलाससागर सूरि, पू. श्री अभयसागर जी म.सा.पू.पं. श्री हेमप्रभविजयजी म.सा. (अब आचार्य) पू.आचार्य देवेश श्रीमद् विजय रामचंद्र सूरि महाराजा, (जिनके आशीर्वाद से तीर्थोद्धार का मुहूर्त मिला) पू. आचार्य श्रीमद् राजयशसूरि म.सा. (वालकेश्वर मुम्बई चातुर्मास में तीर्थोद्धार जीर्णोद्धार के मार्गदर्शन की निश्रा प्रदान की) पू. आचार्य श्रीमद् वारिषेण सूरि म.सा. (सूरि मंत्र श्री पांचवी पीठिका की आराधना की) आदि अनेक गुरु भगवंतो का सम्बल मिलता गया। छत्तीसगढ़ रत्न शिरोमणि पू. साध्वी श्री मनोहरश्रीजी म.सा.पू. साध्वी श्री सर्वोदया श्रीजी म.सा., पू.साध्वी श्री रम्भाश्रीजी म.सा. आदि की सतत प्र्रेरणा ने काव्यमय तीर्थोद्धार की संरचना का आयाम दिया। जिन शासन प्रभावना, सहित, दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप की आराधना के पृष्ठ सतत तीर्थोद्धार का आधार बनता गया ।
तीर्थोद्धार के दिन से लेकर आज तक इस स्थल की जो जाहोजलाली समूचे विश्व में हुई है निश्चिंत ही विद्वानों के उस कथन को सार्थक बनाते है। जिसमें कहा जाता है जिन जिन स्थानों पर पवित्र क्रियाएँ हुई वे स्थल निरंतर निर्मल शुध्ध रजकणों से परिपूर्ण होते है ऐसे स्थानों की निर्मलता इतनी अधिक होती है कि वहाँ आनेवाले हर प्राणी पर अचूक असर होता है।
प्राणी मात्र के कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। अशुध्ध विचार नष्ट होते हैं प्रत्येक जीव पर सुंदर चारित्र छाप पड़ती है। ये ही स्थल तीर्थ विशेषण से जाने जाते है। तीर्थंकर पार्श्व प्रभु की तारक साधना की पवित्रता का अणु अणु यहाँ फैला है जो अनुभूत किया गया है। तीर्थोद्धार के साथ प्रतिदिन तीन दिवसीय उपवास, उपधान तप सहित विविध तपस्याओं, महामंत्रों का जाप, पूजा अर्चना आदिक ने मांगलिकता को संजाये रखा है। जैनों के पवित्र तीर्थों की श्रृंखला में उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा ने गौरवशाली स्थान बनाया है। प्रतिदिन यहाँ आने वाले हजारों श्रद्धालुओं की अवर्णनीय श्रद्धा भक्ति इसका जीवंत आधार है।
परम उपकारी कविकुलकिरीट महाबसंत सूरिदेव दिव्य आषीषदाता प.पू. श्रीमद् विजय लब्धिसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ प्रभावक आषीषदाता आचार्य भगवंत प.पू. श्रीमद् विजय विक्रमसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ पति संबंधित दस्तावेजों के साक्षात्कार प.पू.पं. श्रीमद् अभयसागरजी म.सा.
तीर्थोद्धार मार्गदर्षक प्रतिष्ठाचार्य प.पू. आचार्य भगवंत, प्रज्ञापुरुष श्रीमद् राजयशसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थोद्धार मुहूर्त प्रदाता पूज्य पाद आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयरामचंद्र सूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ के रचनाकार साधुता के स्वामी प.पू. श्रीमद् कैलाससागर सूरीश्वरजी म.सा.