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देव-गुरु-धर्म की असीम कृपा से काव्यमय जिन भक्ति तपोभूमि
परम तारक देवाधिदेव तीर्थकर परमात्मा श्री पार्श्व प्रभु की साधना युक्त विहार विच्छेद स्थल तपोभूमि के तीर्थोद्धार का 35वाँ वर्ष अपने विकासोन्नयन की अतुलनीय अनुपम संरचना से समृद्ध बना है। जिनेश्वर परमात्मा की श्रमण कालीन यहा। अंकित चरण चिन्हों का मंदिर अपने जीर्णोद्धार की समर्पित भक्ति के साथ असंख्या जीणोद्धारित श्रद्धालुओं की गहरी आस्था से महाप्रासाद चिदानन्द प्रदान करता दर्शन-ज्ञान-चारित्र-के रत्नत्रयी जीवन मंत्र की आराधना का काव्यमय समर्पण है।
यह देवगुरु-धर्म की असीम कृपा का ही फल है कि 35 वर्षों की परमात्म भक्ति मंे अनगिनत श्रावक-श्राविकाओं ने अपने तन-मन-धन की सुकृत से अविस्मरणीय इतिहास बनाया है।
पुण्यानुबंधी पुण्य अर्जन की इस स्वर्णिम अवधि के लाभार्थी जिन शासन प्रेमी पुण्यशालियों, जिन शासन सेवारत श्री संघों, संस्थानों की अविस्मरणीय सहभागिता की अंतरमन से अनुमोदना करता हूँ।
इस प्रदीर्घ अवधि में इस अकिंचन तथा साथियों से जानते-अजानते हुए जिनाज्ञा विरूद्ध कार्य-व्यवहार हुआ हो तो ‘मिच्छामि दुक्कडं.’
बैशाख सुद-11
वीर संवत् 204
वि.सं. - 2071
श्री लब्धि कृपा आधेय
(रावलमल जैन ‘मणि’)
विनम्र श्री संघ सेवक
परम उपकारी कविकुलकिरीट महाबसंत सूरिदेव दिव्य आषीषदाता प.पू. श्रीमद् विजय लब्धिसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ प्रभावक आषीषदाता आचार्य भगवंत प.पू. श्रीमद् विजय विक्रमसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ पति संबंधित दस्तावेजों के साक्षात्कार प.पू.पं. श्रीमद् अभयसागरजी म.सा.
तीर्थोद्धार मार्गदर्षक प्रतिष्ठाचार्य प.पू. आचार्य भगवंत, प्रज्ञापुरुष श्रीमद् राजयशसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थोद्धार मुहूर्त प्रदाता पूज्य पाद आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयरामचंद्र सूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ के रचनाकार साधुता के स्वामी प.पू. श्रीमद् कैलाससागर सूरीश्वरजी म.सा.