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परम गुरुभक्त, श्रावकवर्य, कर्मनिष्ठ रावलमल जैन ‘मणि’ द्वारा तीथोद्धार के लिए बढ़ाए कदम से कदम मिलाकर चलने लाचंद नाहर, चम्पालाल बैद, ब्रजरत्न तैलंग, कस्तुरचंद बैद मनमोहनचंद कानूगा, श्रीचंद लुनावत, तिलोकचंद गोलछा, शांतिलाल गोलछा, पन्नालाल गोलछा, सतनलाल मगनलाल देसाई, जयंतिलाल सी. शाह, वीनूभाई चैकसी, जयंतिलाल मेहता, अमरचंदभाई मेहता, मदनचंद सराफ, मूलचंद बोथरा, चैनराज लूनिया, किशनालाल कोठारी, मोहनलाल मेहता, सुदर्शन जैन, से लेकर हजारों श्रद्धालुओं के कदम 35 वर्ष पूर्व बढ़े थे। भक्ति भरे पदचाापों ने जिनेश्वर परमात्म भक्ति को चहूँ ओर गूंजित किया। तीथोद्धार की सांस्कृतिक परम्पराओं को अनगिनत हाथों ने पार्श्व प्रभु के चरणों में अपनी अटूट श्रद्धाभक्तिके पुष्प चढ़ाये। तीथोद्धार-जीर्णोद्धार के इन गौरवशाली दिनों में शासन का जयवंता स्वरूप दर्शनीय बना जिसे अभिव्यक्ति देना अति कठिन है।
भारतीय संस्कृति में जैन संस्कृति का अग्रणी स्था है। जैनत्व को समर्पित आत्म कल्याणर्थियों की अपनी देशभक्ति, धर्मवीरता, दानवीरता एवं कर्मवीरता का उज्ज्वल दैदीप्यमान चारित्र इतिहास ‘सर्वमंगल मांगल्यं’ से भरा पड़ा है।
अतीत की महिमामंडित गाथाओं में साधना परक जीवन, जीव मात्र पर करुणा का असीम प्रवाह, उन्नत कलात्मक जीवन तथा उच्च कोटि के आत्म समर्पण का गौरवशाली अध्याय है। शिलप स्थापत्य, कला भावना तथा आत्मा को पवित्र बनावे ऐसे अनगिनत उल्लेखों से अतीत गुंजित है। प्रकर्ष पुण्यवंता परमात्मा का शासन अर्थात जिन शासन ऐसे अद्भुत जिन शासन की प्राप्ति के दुर्लभ अवसर का अनेक पुण्यशालियों ने लाभ उठाकर इतिहास पुरुषों की सदियों पुराने इतिहास को जाज्वल्यमान रखा है। प्रातः स्मरणीय आचार्य भगवंतों की इसीम ज्ञानवंत प्रेरणा बल एवं आशीर्वाद ने आत्मा को पवित्र करे ऐसे जैन मंदिरों का निर्माण कराया तथा अनेक प्राचीन खंडित हुए, खंडहर बने ऐसे जैन मंदिरों को जीर्णोद्धार कराया, तीर्थोद्धार कराया सदियों पुरानी यह गौरवशाली परम्परा का हल काल हर समय में अनुपालन होता रहा है।
इतिहास के झरोखे से भारतीय इतिहास के निर्माण में जैन संस्कृति का स्थान महत्वपूर्ण रहा है। सदियों की गौरवशाली परम्परा में ही 20वीं सदी का उत्तरार्द्ध महिमा मंडित हुआ है नगपुरा में मध्यप्रदेश जो अब छत्तीसगढ़ राज्य है के दुर्ग शहर के पश्चिमी भाग पर शिवनाथ नदी का तट जैन श्रमण परम्परा एवं उसकी संस्कृति वैभव से भरा पड़ा है और आज वहा। सकल तीरथ वंदूकर जोड़ के गुंजन से वीतराग वंदना का समर्पण है। शिलालेखेां एवं पुरातत्वीय चिन्हों ने तीर्थकर श्री पार्श्व प्रभु का अपने विहार मार्ग में इस स्थल पर साथना करने की पवित्रता को पुष्ट किया है।
परम उपकारी कविकुलकिरीट महाबसंत सूरिदेव दिव्य आषीषदाता प.पू. श्रीमद् विजय लब्धिसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ प्रभावक आषीषदाता आचार्य भगवंत प.पू. श्रीमद् विजय विक्रमसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ पति संबंधित दस्तावेजों के साक्षात्कार प.पू.पं. श्रीमद् अभयसागरजी म.सा.
तीर्थोद्धार मार्गदर्षक प्रतिष्ठाचार्य प.पू. आचार्य भगवंत, प्रज्ञापुरुष श्रीमद् राजयशसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थोद्धार मुहूर्त प्रदाता पूज्य पाद आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयरामचंद्र सूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ के रचनाकार साधुता के स्वामी प.पू. श्रीमद् कैलाससागर सूरीश्वरजी म.सा.