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उपधान तप की प्रथम आराधना
पू.आगमोद्धारक ध्या. स्व. आचार्य देवजी श्री आनंद सागर-चन्द्रसागर-देवेन्द्रसागर सूरीश्वर जी म. श्री के शिष्य रत्न पू. पंन्यास प्रवर श्री नरदेव सागर जी म. श्री एवं आपके शिष्य रत्न पू. मुनि श्री चन्द्रकीर्ति सागर जी म. श्री ज्येष्ठ मास मास में श्री नगपुरा तीर्थ यात्रा निमित्त पधारे।
पूज्य श्री के पदार्पण होते ही श्री उवसग्गहरं पाश्र्वनाथ जी प्रतिमा के प्रत्येक अंग से करीब 2 घंटा तक अमीवर्षो हुई जिससे अत्यंत हर्षित होकर कार्यकर्तागण एवं उपस्थित श्रीसंघ ने पूज्यश्री को चातुर्मास पश्चात महामंगलकारी श्री उपधान तप की परम श्रेष्ठ आराधना इस पुण्य तीर्थ भूमि पर कराने के लिए आग्रहपूर्ण विज्ञप्ति की। पूज्यश्री ने भी उदारभाव से विज्ञप्ति स्वीकार कियया, जिससे परम आनंदोल्लास की छाया फैल गई।
श्री पाश्र्व प्रभु दीक्षा कल्याणक शुीा दिन ता. 23.12.1989 पो.ब. 11 शनिवार से श्री उपधान तप की महामंगलकारी आराधना का शुभ प्रारंीा हुआ है। इस महान आराधना में दूरसुदूर से पधारे हुए 166 पुण्यात्मा सम्मिलित हुए हैं।
जप-तप की बुनियाद पर स्थापित श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ तीर्थोद्धार के पाये में उपधान तप की प्रथम आराधना प.पू.पं. (अब आचार्य) श्रीमद् नरदेव सागर जी म.सा. की निश्रा में हुई। आराधक श्रावक श्राविकाओं ने तीर्थ के चल रहे निर्माण स्थलों पर ‘टेन्ट हाऊस’ में उत्कृष्ट आराधना का लाभ लिया।
उपधान तप आराधना के साथ 36 छोड़ के उजमणा युक्त माला महोत्सव हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर पू. श्री नरदेव सागर जी ने श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थपति को अपना काव्य छंद समर्पित कियाः
परम उपकारी कविकुलकिरीट महाबसंत सूरिदेव दिव्य आषीषदाता प.पू. श्रीमद् विजय लब्धिसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ प्रभावक आषीषदाता आचार्य भगवंत प.पू. श्रीमद् विजय विक्रमसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ पति संबंधित दस्तावेजों के साक्षात्कार प.पू.पं. श्रीमद् अभयसागरजी म.सा.
तीर्थोद्धार मार्गदर्षक प्रतिष्ठाचार्य प.पू. आचार्य भगवंत, प्रज्ञापुरुष श्रीमद् राजयशसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थोद्धार मुहूर्त प्रदाता पूज्य पाद आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयरामचंद्र सूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ के रचनाकार साधुता के स्वामी प.पू. श्रीमद् कैलाससागर सूरीश्वरजी म.सा.