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साधना-आराधना की यात्रा

उपधान तप की तृतीय आराधना
वर्ष 1994 की चातुर्मासिक आराधना के पश्वात तीर्थोद्धार-जीर्णोद्धार मार्गदर्शक श्री लब्धि विक्रम गुरुकृपा पात्र प्रतिष्ठाचार्य श्रीमद् विजय राजयश सूरीश्वर जी म.सा. का तीर्थ में पर्दापण हुआ। पूज्यश्री की निश्रा में पोष बद 10 की आराधना के साथ 5 फरवरी 1995 को भव प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ।

प्रतिष्ठा उपरान्त पूज्य श्री ने समूचे छत्तीसगढ़ अंचल में विहार कर जन मानस को धर्मलाभ से लाभान्वित किया। वर्ष 1995 की चातुर्मास आराधना हेतु तीर्थ में स्थिरता बनी।

मंगलमयी कल्याणकारी चातुर्मास महोत्सव में अनेकविध अनुष्ठान सम्पन्न हुए इसी श्रृंखला 3 अक्टूबर 1995 आसोज सुद 10 से महामांगलिक उपधान तप की तृतीय आराधना पूजय श्री की निश्रा में प्रारम्भ हुई। जिसका माला महोत्सव 21 नवम्बर 1995 मागखर बद 14 को सम्पन्न हुआ। इस दरिम्यान तीर्थ के अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव में निर्मित श्री मेरूपर्वत जिनालय में 24 तीर्थकर परमात्मा की प्रतिष्ठा, कु. नीलम शाह अहमदाबाद की भगवती दीक्षा भी सम्पन्न हुई।

श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ

तीर्थोद्धार मार्गदर्शक प्रतिष्ठाचार्य