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चिर प्रतिक्षित प्रतिष्ठा धन्य घड़ी-धन्य दिवस 5 फरवरी 1995
5 फरवरी 1995 माघ सुद 6 सं. 2059 के दिन परम तारक देवाधिदेव श्री पार्श्व प्रभु की भव्य प्रतिष्ठाा कराने वसंती रंगो से सज संवर गया शिवनाथ का पश्चिमी तट। आज उसकी खुशियों ने बासंती पवन को न्यौता दिया था कि आकर वह प्रभु पार्श्व के चरणों को अपने साथ उसे भी ले जाकर छू लेने में मददगार बन जाए।
अनगिनत घडों में समाकर अपनी जलधारा से प्रभु को पखारने सुबह की प्रभाती मंगल गीतों में नई उमंग, नई चेतना भरकर चली आई। श्रमण आचार्य देव श्री राजयशसूरीश्वर जी म.सा.के साथ चैत्यवंदन, भक्तामर स्त्रोत एवं उवसग्गहरं स्तोत्र से जिन भक्ति विशिष्ट जाप, गुरु गौतस्वामी स्तुति, भगवती पद्मावती माणिभद्र सर्व शासन अधिष्टायक स्तुति, सेवा पूजा का आनंद ही आनंद छा गया। शिवनाथ के इस अंचल को कभी श्रमण पार्श्व प्रभु ने अपने पद रज से पवित्र बनाया था।
उस समय प्रभु भक्तों ने अने स्वामी श्री पार्श्व प्रभु के चरण चिन्ह (पादुका) को पत्थर पर तरास कर देहरी में स्थापित किया था और श्री रावलमल जैन ‘मणि’ जी के संघर्षमय समर्पित सृजन संकल्प से आज भव्य श्री उवसग्गहरं पार्श्व जिनालय निर्मित हुआ एक भव्य तीर्थोद्धार के साथ।
Foot Prints of The Lord:
The presence of very ancient shrine on whose threshold (DEHRI) stood the pious footprints of Parshwa- Prabhu was mutilated by the impact of time. It was rusty maroon coloured and dilapidated. As the luck would have it, an eminent man of letters. journalist, and scholar Shri Rawalmalji Jain 'Mani' traced them out and got them renovated with the help of devotee friends. He was destined to play the role of a pioneer in making the dream of a Jain,- shrine, a reality. Presently positioned on the right side of the first pedestal or step of the main temple, the foot - prints of the Lord are the first object of worship and homage.
Naming of The Lord:
Lord Parshwanath was first named as "UWASAGGHARAM" as per Bhadrabahu Samhita ppp.38.Vo1,111 by the 14th predecessor of Lord Mahaveer's Lineage; Shri Bhadrababhu Swami, UWASAGGAHARAM stands for the Emancipator of all evils. His worship emancipates an individual of evil thoughts and evil actions paving the way for self realization and renunciation.
परम उपकारी कविकुलकिरीट महाबसंत सूरिदेव दिव्य आषीषदाता प.पू. श्रीमद् विजय लब्धिसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ प्रभावक आषीषदाता आचार्य भगवंत प.पू. श्रीमद् विजय विक्रमसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ पति संबंधित दस्तावेजों के साक्षात्कार प.पू.पं. श्रीमद् अभयसागरजी म.सा.
तीर्थोद्धार मार्गदर्षक प्रतिष्ठाचार्य प.पू. आचार्य भगवंत, प्रज्ञापुरुष श्रीमद् राजयशसूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थोद्धार मुहूर्त प्रदाता पूज्य पाद आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयरामचंद्र सूरीश्वरजी म.सा.
तीर्थ के रचनाकार साधुता के स्वामी प.पू. श्रीमद् कैलाससागर सूरीश्वरजी म.सा.