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धारीवाल परिवार पुणे

काव्यमय तीर्थोद्धार की संरचना के समृद्ध आधार
असंख्य श्रद्धालुओं की गहरी आस्था की तपोभूमि श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ के अपने तीर्थोद्धार इतिहास की 35 वर्षीय पड़ाव में अनगिनत श्रावक-श्राविकाओं ने तप-जप की मांगलिकता बिखेरते हुए कदम-कदम पर तन7मन-धनसे सुकृत लाभ लेकर अपने योगदानों का अविस्मरणीय बनाया। वहीं देश-विदेश के श्री संघों, संस्थाओं एवं ट्रस्टों ने जीर्णोद्धार-जीर्णोद्धार संरचना में सहभागिता का उल्लेखनीय अध्याय जोड़ा है।

स्नेहिल श्री रसिकलाल माणिकचंद धारीवाल
पारिवारिक संस्कार राशि के पुण्य संचयित वटवृक्ष के तले काव्यमय जीवन सरंचना के आयाम ने श्री रसिकलाल माणिकचंद धारीवाल की प्रखर क्षमता को प्रभु पार्श्व के विहार विच्छेद स्थल के तीर्थोद्धारित श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ, नगपुरा के विकास से जोड़ा। शाश्वत शंत्रुंजय-सिद्धाचल महातीर्थ, विश्वन्द्य श्री शंखेश्वर तीर्थ सहित अनेक तीर्थो के चिर अपेक्षित जनहिकारी विकास कार्यो से अपनी श्रद्धा के सरगम से सुकृत लक्ष्मी का सदुपयोग किया। अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व को विद्वतापूर्ण जीवन पारखी युक्त आनन्दी गुणों से संवारते-संजोते हुए रसिकलाल भाई जन सेवा के पर्याय पुरुष आज सगर्व कहे जाते हैं। कहे भी क्यों न जावें उनका कृतित्व सामाजिक सेवा, जनसेवा, राष्ट्रसेवा, युग व्यक्तित्व निष्ठा सब परिधि में जो हैं और केन्द्र में है जिन शासन की सेवा का लक्ष्य। उन्होंने महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशों में जिनशासन प्रभावना के कार्यों के साथ-साथ शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी सुकृत लक्ष्मी का सुन्दरतम् लाभ लिया है।

तीर्थोद्धारित एवं जीर्णोद्धारित श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ में प्रचाीन श्री कल्याण मंदिर स्त्रोत जिनालय जीर्णोद्धार के प्रमुख लाभार्थी बनकर अपना योगदान हस्ताक्षरित किया है वहीं श्री रसिकलाल माणिकचंद साधार्मिक भक्ति सदन एवं वातानुकुलित अतिथि गृह का निर्माण कराया है साथ ही चिकित्सा-शिक्षा के क्षेत्र में भी आपका प्रयास प्रशंस्य एवं साधुवादार्ह है। श्री रसिकभाई को उनसे हुए विभिन्न विषयों पर विचार विमर्श करते समय वे अपनी आस्थायी निमग्नता में सदैव प्रभावित दिखे।

उनकी जीवन साथीसेवा परायण सौभाग्यवती श्रीमती शोभादेवी धारीवाल ने अपनी उदात्त भावनाओं को संस्कारित परिवार द्वारा स्थापित आर.एम. धारीवाल फाउंडेशन जिनकी वे उपाध्यक्षा भी है इस तरह अपने आनन्दी गुणों की नींव को रेखांकित करती हैं ‘‘इस संस्थान को प्रारम्भ से ही समाज के सभी क्षेत्रों में, सभी वर्गों के लिए महत्वपूर्ण आयोजन करने का अवसर प्राप्त हुआ। हम सक्रिय भी रहे और बेहद सफल भी; जी हाँ, श्री रसिकलाल धारीवाल वो ऊँचा नाम जो सालों से लाखों लोगों को व्यावसायिक और सामाजिक क्षेत्र में क्रांति लाने को प्रेरित करता रहा है। इनकी इसी विचारधारा और ऊँची सोच को और ऊँचाई तक पहुँचाने के लिए हम वचनबद्ध हैं।

सेवाधर्म के सागर में आकंठ डूबे करते सदा वे मानवीय प्रतिमान का अभिषेक
अस्तित्व दृष्टि चेतना के अविरल बने रसिक विनम्र प्रतिबिम्ब।

श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ

तीर्थोद्धार मार्गदर्शक प्रतिष्ठाचार्य